
आज कोई भी विषय अकाव्योचित नहीं - समीर परिमल
पुरानी परंपराओं का टूटना स्वाभाविक - संजय कुमार कुंदन
कविता में आंतरिक लय का होना महत्वपूर्ण - लीना झा
पटना। सेंटर फॉर रीडरशीप डेवलपमेंट के द्वारा आयोजित पटना पुस्तक मेला में बोधगया सभागार में जन संवाद के अंतर्गत "काव्य की नई परंपरा" विषय पर समीर परिमल, संजय कुमार कुंदन तथा लीना झा द्वारा अपने विचार व्यक्त किया गया। विषय पर बोलते हुए समीर परिमल ने कहा कि काव्य की नई परंपरा यही है कि यह परंपरागत निश्चित पैटर्न का निषेध करती है। आज की कविता भोगे हुए यथार्थ का चित्रण करती है। आज कोई भी विषय अकाव्योचित नहीं है।
संजय कुमार कुंदन ने अपने संबोधन में विषय को विस्तार देते हुए कहा कि चूंकि साहित्य समाज का दर्पण है, इसलिए जब समाज अपनी पुरातन परंपराओं के बंधन तोड़ रहा है तो काव्य की पुरानी परंपराओं का टूटना अस्वाभाविक नहीं है।
विदुषी लेखिका लीना झा ने काव्य की नई परंपराओं पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि नई परंपराओं ने आधुनिक कविता को समृद्ध किया है। कविता छंदबद्ध हो या छंदमुक्त, उसकी सबसे पहली आवश्यकता है कविता होना, उसमें आंतरिक लय का होना।
इससे पूर्व सीआरडी के रत्नेश्वर जी द्वारा तीनों वक्ताओं को पटना पुस्तक मेला का थैला देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन किया ज्योति स्पर्श ने। दर्शक दीर्घा में उपेंद्रनाथ पांडेय, रश्मि गुप्ता, राज कांता, चंदन द्विवेदी समेत सैकड़ों पुस्तक एवं साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।
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