9 मुखी रुद्राक्ष , धारण विधि , मंत्र रहस्य एवं सिद्धि – हरिणेश कुमार जैन
नवमुखी रुद्राक्ष भैरव-स्वरूप है। इसे शिव-सायुज्य को प्रदान करनेवाला कहा गया है। यह कपिल (अग्नि-रंग-स्वरूप) तथा मुक्तदायक है अथवा 'कपिलः मुक्तिदः' (महर्षि कपिल के शाप से सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए, फिर अनेक प्रार्थना के बाद वे ही कपिल ऋषि कपिल-धारा अर्थात् गंगा के रूप में उन्हें मुक्ति प्रदान करते है।) नव-वक्त्र का धारणकर्ता शंकर के समान बलशाली हो जाता है।
लक्षकोटि सहस्र (अर्थात् अगणित) ब्रह्म-हत्या के पाप हो जो अर्जित करता है, उसको नवमुखी रुद्राक्ष शीघ्र ही पाप-नाश के बाद निष्पाप कर देता है। रुद्राक्षजाबालोपनिषद् के अनुसार नवमुखी रुद्राक्ष में नव शक्तियों का निवास होता है। अतः यह नवशक्ति-प्रतीक बीजाक्ष है। इसके धारण से सभी नौ शक्तियाँ प्रसन्न होती हैं। श्रीमद्देवीभागवत और पद्मपुराण दोनों ही नवमुखी रुद्राक्ष पर भैरव देव का निवास सिद्ध करते हैं। देवलोक में भी नवमुखी रुद्राक्ष सदैव इन्द्र और अन्य देवों द्वारा पूजित होता है। भगवान् शंकर के आश्रम में स्वयं शंकर की तरह पवित्र निवास-स्थल पर यह रुद्राक्ष गणेश की तरह है-ऐसा शास्त्र-वचन है। इसके धारण से भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। सहस्र भ्रूण-हत्या और शत ब्रह्म-हत्या के पाप से नवमुखी रुद्राक्ष तत्काल मुक्त करता है। नवमुखी रुद्राक्ष पर यमराज का भी अधिवास शास्त्रोक्त है। इसके धारण से यमराज का भय नहीं रहता। यमराज को काल कहा गया है। भैरव को भी काल-भैरव कहते हैं। नवमुखी रुद्राक्ष के धारण से ये दोनों कालदेव प्रसन्न होते हैं। तत्परिणामतः अकाल-मृत्यु नहीं होती। नवग्रह की बाधाएँ समाप्त होती हैं और नव शक्तियों की ऊर्जा मिलती रहती है। कुछ शास्त्रों में नवमुखी को रुद्र-स्वरूप भी कहा गया है। यह इसलिए भी सत्य है कि भैरव (काल-भैरव) और यमराज (काल) दोनों ही शिव के महत्त्वपूर्ण शासनांग हैं।
नवमुखी रुद्राक्ष का संचालन-नियंत्रण करनेवाला ग्रह केतु है। अतः इसके धारण से केतु ग्रह की प्रसन्नता प्राप्त होती है और प्रतिकूलताएँ नष्ट होती हैं।
इसके नियंत्रक और संचालक ग्रह केतु है, जो राहु की तरह ही छाया-ग्रह हैं। जिस प्रकार राहु शनि के सदृश हैं, उसी प्रकार केतु मंगल के सदृश हैं। मंगल की तरह केतु अपनी युति (साह्चर्य) अथवा दृष्टि के प्रभाव में आनेवाले पदार्थों को हानि पहुँचाता है।
इसके कुपित होने पर फेफड़े का कष्ट, ज्वर, नेत्र-पीड़ा, उदर-कष्ट, फोड़े-फुसियाँ, शरीर में दर्द, दुर्घटना एवं अज्ञात कारणों से उत्पन्न रोग परेशान करते हैं। केतु को मोक्ष का कारक भी माना गया है। इस ग्रह की शान्ति के लिए नवमुखी रुद्राक्ष शुभात्मक और लाभात्मक है।
(२) राशि
ग्रह की भाँति प्रत्येक राशि पर भी अधिष्ठित देव हैं। अपनी जन्म राशि के अनुसार निर्दिष्ट मंत्र का एक माला ( रुद्राक्षमाला) संख्यक (१०८ बार जप नित्य प्रति करना चाहिए। इससे राशि का आशीर्वाद प्राप्त होता है, चित्त में प्रसन्नता आती है। आरोग्य की प्राप्ति होती है। समाज में प्रतिष्ठा और प्रभाव की वृद्धि होती है। जिन्हें अपनी जन्म राशि ज्ञात न हो वे अपनी नाम राशि पर जप कर सकते हैं। प्रातःकालीन पूजा में इस जप-विधान को सम्मिलित कर लेना चाहिए।
संख्या राशि मंत्र
१. मेष “ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीनारायणाय नमः"
२. वृष “ॐ गोपालय उत्तरध्वजाय नमः"
3. मिथुन "ॐ क्लीं कृष्णाय नमः"
4. कर्क “ॐ हिरण्यगर्भाय अव्यक्त रूपिणे नमः"
5. सिंह "ॐ क्लीं ब्रह्मणे जगदाधाराय नमः"
६. कन्या “ॐ नमो प्रीं पीताम्बराय नमः"
७. तुला “ॐ तत्त्वनिरञ्जनाय तारकरामाय नमः"
८. वृश्चिक “ॐ नारायणाय सुरसिंहाय नमः”
९. धनु “ॐ श्रीं देवकृष्णाय ऊर्ध्वषंताय नमः"
१०. मकर “ॐ श्रीं वत्सलाय नमः"
११. कुंभ “ॐ श्रीं उपेन्द्राय अच्युताय नमः"
१२. मीन “ॐ क्लीं उद्धृताय उद्धारिणे नमः”
अथ नववक्त्ररुद्राक्षधारणविधिः(नवमुखी रुद्राक्ष को धारण की शास्त्रसम्मत – विधि)
विनियोगः
अस्य श्री भैरवमन्त्रस्य नारद ऋषिः, गायत्री छन्दः, भैरवो देवता, वं बीज, ह्रीं शक्तिः, अभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः
नारदऋषये नमः शिरसि । गायत्री छन्दसे नमो मुखे । भैरवदेवतायै नमो हृदि, वैबीजाय नमो गुहये । ह्रीं शक्तये नमः पादयोः ।
करादिन्यासः
ॐ ॐ अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । ॐ वँ मध्यमाभ्यां वषट्। ॐ यँ अनामिकाभ्या हुम् । ॐ रँ कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् । ॐ लँ करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् ।
हृदयादिन्यासः
ॐ ॐ हृदयाय नमः । ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा। ॐ वँ शिखायै वषट् । ॐ यँ कवचाय हुम् । ॐ रँ नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ लँ अस्त्राय फट् ।
ध्यानम् -
कपालहस्त धुलगोपवीत कृष्णच्छवि दण्डधर त्रिनेत्रम् ।
अचिन्त्यमाद्यमनुपानमत्तं हृदि स्मरेट्टैरवमिष्टदं नृणाम् ॥
मन्त्राः-
१. ॐ ह्रीं नमः (शिवमहापुराणम् : विद्येश्वरसंहिता)
२. ॐ है नमः (मन्त्रमहार्णव) + (पद्मपुराणम्)
३. ॐ जूम् (पद्मपुराणम्)
४. ॐ ह्रीं नमः (स्कन्दपुराणम्)
५. ॐ ह्रीं वँ यँ रँ लँ (परम्परागत)
६. ॐ नमः शिवाय (बृहज्जाबालोपनिषद् द्वारा निर्दिष्ट षडक्षर-मन्त्र)
७. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।
(बृहज्जाबालोपनिषद् द्वारा निर्दिष्ट महामृत्युञ्जय-मन्त्र)
9 मुखी रुद्राक्ष के बारे में अधिक जानने के लिए कृपया वेबसाइट देखें:
1. https://www.rudraksham.com/9-mukhi-rudraksha-bead-nau-mukhi-nine-faced-rudraksha-bead-from-nepal-100-authentic-natural-pure-energised-collector-bead.html
2. https://www.rudraksham.com/9-mukhi-rudraksha-indonesian-beads-japa-mala-108-beads-java-nine-mukhi-rudraksha-beads-kantha-mala-nau-mukhi-mala-rosary.html
3. https://www.rudraksham.com/kaal-sarp-power-pendant-kal-sarp-dosha-removal-and-to-pacify-malefic-planets-rahu-ketu-combination-of-8-mukhi-rudraksha-with-9-mukhi-rudraksha-bead-in-silver-pendant.html
4. https://www.rudraksham.com/9-mukhi-rudraksha-pendant-benefits-of-nine-mukhi-rudraksha-original-and-energised-9-mukhi-nau-mukhi-pendant.html
5. https://www.rudraksham.com/9-mukhi-rudraksha-wrist-band-with-5-mukhi-rudraksha-beads-from-nepal-original-&-natural-nine-faced-rudraksha-thread-band.html
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