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हाजीपुर के ऋजा की साहित्यिक रचना पढ़िए

हाजीपुर के ऋजा की साहित्यिक रचना पढ़िए

 



तू सबो के लिए जब, सच में ख़ास था.....!

तो क्यूं नहीं, दिखा किसी को आंखों में तेरी कि तू उदास था...?

आज करते हैं सब बातें तेरी अपने महफिलों में अपने यारों में....

तब क्यू नहीं पूछा किसी ने हाल तेरा ,जब तू उनके पास था !!!


लगी सैंकरो की भीर मे...

था कोई शख्स अकेला चला।।

तकता था कल तक जो तारों को ....

आज उन्हीं तारों का हैं हो चला..!!!


मैं डर गई हूं ज़िंदगी से....

मौत के तेरे बाड़ से !!

तू मारा गया कोई साजिश से, या मर गया हालात से.


तेरे जाने के बाद से...

डरती हूं अच्छाई की हालात से...!

जो कही कर गई अच्छा तो खटक न जाऊं किसी बुरे के आंख में,

गवां दू फिर जिंदगी यू बेहरहम कि तरह ,

और फिर भी तड़पू मांगने को इंसाफ इन दरिंदे समाज से ....


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