निभाया ना गया ( लेखक - आदित्य रंजन )
फिर यूं हुआ अहद निभाया ना गया
कितना था इश्क मुझसे बताया ना गया
वो रोजे मे थी जाने किसी के लिए
खै़र निवाला मुझसे भी खाया ना गया।
किनारे बैठ देखते रहे दरिया को जानने वाले
वो डूब रहा था उसे बचाया ना गया ।
उसे बेहद पसंद थे ये मेरे गीत,
फिर उसके बाद मुझसे कभी गाया ना गया।
एक पागल मरा था कुछ रोज़ चर्चे हुए
महफिल में यह मुद्दा फिर कभी उठाया ना गया।
मरते मरते भी दे गया एक शदीद मंज़र
किसी सितारे का टूटना भी कभी जा़या ना गया।
मैं कितना भी तनहा चला किसी ख्वाब की जानिब
मुझे छोड़कर कभी मां का साया ना गया।
वो भी चुप रही जब आखरी मर्तबा मिले
दर्द मुझसे भी दिल का बताया ना गया
गूरुर का होना भी लाजिमी है इश्क में
फकत याद में तो ताजमहल बनाया ना गया।
चुप होकर एक रोज ताल्लुक तोड़ लिया हमने
एहसान हमसे कभी किसी पर जताया ना गया
तु भी बड़ा नाजुक किरदार का निकला 'आदि'
बोझ रिस्तों का तुझसे भी उठाया ना गया।
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