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शिव नयन प्रकाश द्वारा लिखित कविता

शिव नयन प्रकाश द्वारा लिखित कविता


मेरी लिखने की शुरुवात पढ़ने से हुई। अंग्रेजी साहित्य का छात्र हूं, पर इतना समझता हूं की सब साहित्य एक ही हैं बस भाषा अलग है। 

कविता पढ़ना अच्छा लगता था, फिर लिखने भी लगे और सुनाया तो लोगों को अच्छा लगा। इस सफर में कभी कुछ फोर्स नही करना पड़ा है। जो महसूस किया लिख दिया, जो अच्छा लगा पढ़ लिया और ऐसे ही चला जा रहा है मेरा और शब्दों का तालमेल।

चलता रहा यूँ ही तो कुछ उल्टा -सीधा कर जाएँगे

जिसके खातिर जीते है उसको साथ ले कर मर जाएँगे


एक बस तेरे दिल के सिवा मेर ना कोई आशना 

तुने भी मुह फर लिया तो किस चौखट हम जाएँगे 


ये नखरे, नाराज़गी, माना बड़ी प्यारी लगती हो

सिर मेरा जो घूम गया फिर हम तुमको तडपाएंगे 


इश्क़ होने मे व्क़्त लगा,पहले हमको बस शौख था ये

की वो मेरा हो जाए अगर, तो हम उसके कहलाएंगे 


एक शायर के प्यार मे पड़ने से पहले ये याद रहे

आधी रात उठा कर तुमको ताज़ा गज़ल सुनाएंगे 

मेरी खुशी का अंदाजा मत लगाओ तुम

मैं जब भी चाहूँ, खुल के रो सकता हूँ


नक़्श-ए-कफ़-ए-पा का पाबस्त नहीं मैं

बढ़ता हूँ उसी सम्त जहाँ खो सकता हूँ।


बदन के कफ़स मे रूह एक है मगर,

हर रोज़ एक शक़्स नया हो सकता हूँ।


मैं नहीं काबिल मेरे पर तुम ज़रूर हो,

मैं खुद का ना हुआ तुम्हारा हो सकता हूँ।

मैं अकेला नहीं जो उस घर में अकेला था

मुझसे भी पहले मेरा कमरा अकेला था।


लहरें उस को चूम कर आगे गुज़र जाती है

इस बार यही सोंच कर साहिल अकेला था।


कोई जानने न पाए की उसके मन में क्या है

वो गज़लें पढ़ता था मगर पढ़ता अकेला था।


यूं तो तुम साथ थें काफी लंबे अरसे से

देर से जाना की मैं रहता अकेला था।


रौशनी की रफ्तार नहीं आई किसी काम

वो जहां गई पहले से अंधेरा अकेला था।


एक बूंद से दरिया में फर्क हो भी तो कितना

तेरे जाने पे ये जाना की मैं कितना अकेला था।

तू बेचैन सी समंदर है , उफान की है चाह तुझे ,

मैं टूटी सी एक नाव हूँ , लहर उठा , डूबा मुझे  ।।


तू तो समय के जैसी है , निरंतरता की कबा तुझे ,

मैं फुर्सत का एक लम्हा हूँ , ख़त्म करती जा मुझे ।।


दहकते आग के जैसी तू , विस्तार की अदा तुझे ,

मैं जंगल की सूखी लकड़ी हूँ , लिपट भी जा जला मुझे ।।


तेरी क्या ख़ता जो अब बना दिया हवा तुझे ,

मैं जल चूका , अब राख़ हूँ , आ पास आ , उड़ा मुझे ।।


कुछ पल को अपने साथ रख , नज़ारे नए दिखा मुझे ,

और जब मैं बोझ बन जाऊं , फिर धुल में मिला मुझे ।।



खुद से किया तो कायर कहेंगे मुझे

ए काश की मेरा कहीं खून हो जाता


जिन्दगी तो सालो से बैठी है मेरे घर

मौत भी आ जाती तो सुकून हो जाता


शुक्र है की व्क़्त रहते शक्स वो हुआ मरहूम

कुछ साल और जीता तो फिज़ूल हो जात 


ए रक़ीब दुआँ मेरी मेरे ह्क़ मे तेरे ह्क़ मे

तू मांगे रब से मेरी मौत और क़ुबूल हो जाता


भला होता मैने जो किया होता तेरा बुरा

मुझको खत्म करना तेरा जूनून हो जाता


खुद से किया तो कायर कहेंगे मुझे

ए काश की मेरा कही खून हो जाता।





है कहाँ अब वो इन'ईकास मेरा पूछे तो

ना जाने हम इस शहर को क्या बताएंगे


शाम ढलते ही मुझे खौफ ये सताती है

के फिर ये रात तेरे बिन ही हम बताएंगे


ना ही लें इश्क-ओ-ज़माने पे मशवरे हमसे

हमसे सीखेंगे तो हर शय मात खाएंगे


ये जुबानी है मेरी जा मोहब्बत की

अपने हाथों से कुछ बना के खिलाएंगे


के भूल जाना मेरी जा भी एक आज़ादी है

जो ना टूटे तो जंजीर हम भुलाएँगे।

आसमा में चलते—चलते थक गया था शायद

सो मेरी आँखों में आके रूक गया है बादल


तारों को ताकते हुए नींद जो आ जाए तो

आंखों से अपनी खींच कर मैं ओढ़ता हूं बादल


एक पल को मैने नजरें उस से फेर क्या कर ली

मेरा चांद तेरे पीछे आके छुप गया है बादल


सहरा हुए इन आंखों से धूल उड़ते देख

मेरे बदले गम को मेरे रो रहा है बादल

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