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पटना में विश्वास जन्मोत्सव:-2023 पर गूंजे शिखरतम काव्य स्वर

पटना में विश्वास जन्मोत्सव:-2023 पर गूंजे शिखरतम काव्य स्वर


बिहार की राजधानी पटना में युगकवि डॉक्टर कुमार विश्वास के जन्मदिन पर मातृभाषा हिंदी संगठन की ओर से आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में देश भर से आए कवि एवं कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

पटना के कालिदास रंगालय में आयोजित यह कवि सम्मेलन इसीलिए भी महत्वपूर्ण रहा क्योंकि यह कवि सम्मेलन हिंदी के सबसे यशस्वी पुत्र, राम कथा मर्मज्ञ युग वक्ता डॉ कुमार विश्वास के जन्म दिवस के रूप में मनाया गया।


कुमार लक्ष्मीकांत के आयोजन एवं संयोजन में यह कवि सम्मेलन संपन्न हुआ जिसमें मुख्य अतिथि के रुप में कला एवं संस्कृति प्रकोष्ठ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बरुण कुमार सिंह एवं विशिष्ट अतिथि के रुप में माला सिन्हा (निर्वतमान पार्षद वार्ड नं•-44) मौजूद रहीं। जिसमें गाजियाबाद से आई कवयित्री शिखा दीप्ति ने सामाजिक रिश्तो के दर्शन को उकेरते हुए "मेरी आंखों के दंडक वन में वनवास तो काटो, मुझे है राम की सौगंध सीता बन के निकलेंगे" पढ़कर सामाजिक चेतना जागृत की। वहीं लखनऊ से आए कवि डॉ शेखर त्रिपाठी ने हास्य व्यंग के माध्यम से चुटकियाँ लेते हुए पढ़ा कि "कलयुग में अब किसी पे भी होगा नहीं यकीँ, सोनी समझकर चैट की सोनू निकल गया"

हिंदी की अध्यापिका एवं कवयित्री रश्मि गुप्ता ने "मुझे भुला के कहां ज़िन्दगी गुजारोगे, बढ़ेगा वक्त तो तुम मुझे पुकारोगे" पंक्ति पढ़कर बिहार की राजधानी पटना के स्वाभिमान की बात कही।


जौनपुर से आए कवि विपिन दुबे ने "हमारी आंखों का इसमें अहम रोल है यूं ही समंदर यह हरा नहीं है" पढ़कर युवाओं में ख़ूब तालियाँ बटोरी।


बिहार राज्य की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत कवि आशीष जी ने "कुछ दिन और यह भरम होता तो अच्छा होता वह जरा और बेशर्म होता तो अच्छा होता" पंक्ति पढ़कर वाहवाही लूटी।


पत्रकारिता के साथ-साथ शब्द धर्म निभाने वाले कवि चंदन द्विवेदी जी ने अपनी श्रँगारिक पंक्तियों से श्रोताओं का मन मोह लिया विकास भवन एवं कुंदन क्रांति ने श्रृंगार की कविताओं से रोमांचित किया। प्रयाग की पावन धरा से आए पंकज उषानंदन ने " ख़फ़ा हूँ ख़फ़ा हूँ मैं खुद से खफा हूँ " पढ़कर तालियां बटोरी।

कवि कुमार लक्ष्मीकांत ने अपनी वीरह की पंक्ति "ज़िन्दगी में जो ज़िन्दगी ना मिलेगी तो मौत को गले से लगा लेंगे हम" पढ़कर सब की आँखें नम कर दी।


कानपुर से कवि अनुभव शुक्ला ने गज़ल पढ़कर समाज के वंचितों का प्रतिनिधित्व किया।

 प्रयागराज के कवि मंच संचालक अंबुज उषानंदन ने दर्शनिक विम्ब प्रस्तुत करते हुए दो पंक्तियों " तन के पैर ठहर जाते हैं मन के पाँव नहीं रुकते एक मुसाफिर बैठे बैठे कितनी दूर चला जाता है" पढ़कर गागर में सागर भरने वाली बात कही।

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