छात्र और बिहार ( लेखक - स्वाती श्रीवास्तव ) पटना
शीर्षक - छात्र और बिहार
कुर्सी की होड़ के बीच में
कुचल गए हैं वो सारे साहस
दब गई आवाज़ अब उनकी
जिनकी चीख से कभी हुआ
यहां था छात्र आंदोलन
बिहार नही यहां बहार है
नोटों का बोलबाला है
नौकरी के इस ज़माने में
पढ़ाई की क्या औकात है?
पुलिस के डंडे के सामने
कभी न खड़ा होगा यहां
अब किसी का कोई बचपन
जो एक गुहार भी लगाए की
मैं एक छात्र हूं; उसी समय
दबा दी जायेगी उसकी अहमियत
है कहां कोई अब वो नेता
जो हुआ था कभी छात्रों का
एक ख़ास अभिनेता!
कुर्सी की होड़ है अभी भी
छोड़ दे तू अब यहां जो हैं
तेरे सारे सपने और अपने
इस होड़ के बीच अब सारे
बिक जायेंगें तेरे वो सारे
सपने और तेरे अपने यहां
मलाल नहीं होगा तुझे भी
की तू भी एक बिहारी था
गर्व से जी ले तू कहीं और
लेकिन फिर कभी लौटकर
तू मत आना बिहार यहां।
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