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विश्वास की "काफ़िला" ने उन्हें दिलाया 12 लाख का पैकेज
बहुधा लोगों का मानना है साहित्य में सिर्फ साधना,सम्मान मात्र तक सीमित है, इससे अधिक इसमें कोई लाभ नहीं। लेकिन बिहार,अररिया जिले के तकिया टोला, कुर्साकांटा में जन्में उभरते हुए युवा साहित्यकार राजीव रंजन विश्वास ने अपनी प्रतिभा से सबको चौंका दिया कि यदि सच्चे मन व लगन से मेहनत की जाए तो सब संभव है। दरअसल गत वर्ष के आखिर में आयी विश्वास की पुस्तक "काफ़िला" भारत के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ नेपाल में भी इस कदर लोकप्रिय हुई कि उनकी कुछ रचनाओं से प्रभावित होकर अंतरराष्ट्रीय ट्रांसलेशन कंपनी लिमिटेड ने उन्हें अनुवादक के रूप में 12 लाख का पैकेज दे डाला।
इनके पिता सच्चिदानंद विश्वास एक शिक्षित किसान व माता इंदुला देवी एक शिक्षित व कुशल गृहिणी हैं। यूं तो इनके घर में साहित्य से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा था परंतु इनके माताश्री कविता पढ़ने की बहुत शौकीन थीं। एक बार शाम के एक दृश्य-सौंदर्य ने इन्हें इस कदर प्रभावित किया कि इनके कलमों से मानों प्रकृति ने पुष्प के रूप में शब्दों की बारिश कर दिए हों। तब से अब तक दो सौ से अधिक कविता, कहानी, लघु-कथा, हाइकू, व्यंग्य, गज़ल, गीत इत्यादि हिंदी, अंगिका व अन्य भाषा में लिख चुके हैं। इनके संपादन में वर्ष 2020 में पुस्तक घरौंदा काफी चर्चे में रही। अब "काफ़िला" की चर्चाएं चारों ओर प्रसिद्धि बिखेर रही है। इन्हें विभिन्न राज्यों से और भी कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। इस पुस्तक की प्रकाशन इंटीग्रिटी मीडिया ने इसे सर्वश्रेष्ठ रचनाकार से भी नवाजा है। जल्द ही इनके दो पुस्तक आने वाली है जो एक काव्य-संग्रह व उपन्यास होगी।
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